BALCO G9 PROJECT: अवैध निर्माण, राजनीतिक दिखावा और न्यायिक विडंबना का महाघोटाला
- Media Samvad Editor
- Dec 3
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कोरबा का BALCO G+9 प्रोजेक्ट अब सिर्फ एक बिल्डिंग का मामला नहीं रहा; यह अवैध निर्माण, राजनीतिक दिखावा और न्यायिक विडंबना का ऐसा त्रिकोण बन चुका है, जो छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक और न्यायिक प्रणाली के कई कड़वे सच सामने लाता है।
भाग 1: DFO का आदेश — निर्माण तत्काल बंद
DFO Office, Korba ने 1 दिसंबर 2025 को अहलुवालिया कंपनी को चिट्ठी लिखकर G+9 प्रोजेक्ट पर तत्काल रोक लगा दी।
DFO, Korba द्वारा जारी आदेश , पूर्व राजस्व मंत्री श्री जयसिंह अग्रवाल एवं श्री तरुण राठौर , पार्षद , बालको के द्वारा की गई शिकायत विषय :राजस्व नियमों का उल्लंघन,पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन,भू-वन भूमि संरक्षण अधिनियम की अवहेलना,नगर नियोजन अधिनियम का उल्लंघन,सार्वजनिक मार्ग अवरोध और “अपराधिक कृत्यों” की उच्च स्तरीय जांच आवश्यक के सबंध मे जारी किया गया है ।
DFO ने कमेटी गठित की है और कहा है कि:
“जांच पूरी होने तक निर्माण कार्य पूर्णतः बंद रखा जाए।”

भाग 2: वही मुद्दा, High Court में PIL — पर खारिज!
कुछ दिन पहले इसी G9 मामले पर एक PIL छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में लगाई गई थी। PIL दायर की थी — स्थानीय एडवोकेट श्री अब्दुल नफीस ने।
High Court ने आदेशित किया :
इस स्थापित कानूनी स्थिति को देखते हुए कि जनहित याचिकाओं को व्यक्तिगत, व्यावसायिक या अप्रत्यक्ष उद्देश्यों का साधन बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती, इस न्यायालय का सुविचारित मत है कि वर्तमान याचिका में प्रामाणिकता का अभाव है और यह एक वास्तविक जनहित याचिका की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है। तदनुसार, यह जनहित याचिका खारिज की जाती है। याचिकाकर्ता द्वारा जमा की गई जमानत राशि जब्त करने का निर्देश दिया जाता है।
उक्त सुनवाई में शासन की ओर से उपस्थित विद्वान महाधिवक्ता द्वारा किया गया कथन
प्रतिवादी/राज्य की ओर से उपस्थित विद्वान महाधिवक्ता ने प्रस्तुत प्रस्तुतियों का विरोध किया और तर्क दिया कि यद्यपि याचिकाकर्ता स्वयं को एक जनहितैषी व्यक्ति होने का दावा करता है जिसका कोई निहित स्वार्थ नहीं है,अनुलग्नक पी-3 दर्शाता है कि वह एक अधिवक्ता है।उन्होंने आगे तर्क दिया कि पेड़ों को काटने से पहले विधिवत अनुमति ली गई थी और काटे गए पेड़ों से अधिक संख्या में पेड़ लगाने का निर्देश जारी किया गया है।
लेकिन…
उसी मुद्दे पर अब DFO ने आधिकारिक जांच बैठा दी, और पूरी बिल्डिंग को रोक दिया।
अब सवाल उठता है:
क्या वन विभाग भी प्रगति में “स्पीड ब्रेकर” है?
जब High Court ने कहा कि वर्तमान याचिका में प्रामाणिकता का अभाव है और यह एक वास्तविक जनहित याचिका की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है। तो DFO ने इतने बड़े कानून-उल्लंघनों को कैसे पकड़ लिया?
जब शासन ने कथन किया की , अनुमति प्रदान की गई है, तो क्या पेड़ काटने की अनुमति वन-विभाग की जानकारी में नहीं थी ?
यहां से पैदा होती है न्यायिक विडंबना (Judicial Irony)।
भाग 3: राजनीतिक विडंबना — अवैध निर्माण का भूमि पूजन!
जिस अवैध निर्माण को DFO ने आधिकारिक रूप से रोक दिया…उसी निर्माण का भूमि पूजन किया था तीन-तीन विभाग के मंत्री श्री लखन देवांगन (श्रम मंत्री,उद्योग मंत्री,आबकारी मंत्री)
मंत्री श्री लखन देवांगन का कथन:
“BALCO औद्योगिक विकास के साथ-साथ श्रमिकों का भी विकास कर रहा है।
”पर सच्चाई?
मंत्रीजी भूमि पूजन कर रहे थे, उसी समय उनकी अपनी पार्टी के पदाधिकारी विरोध कर रहे थे। कुछ दिनों बाद DFO ने उसी निर्माण को अवैध बताते हुए रोक दिया। तो क्या मंत्रीजी “अवैध निर्माण का वैध भूमि पूजन” कर रहे थे ?
भाग 4: BALCO की परंपरा — हर प्रोजेक्ट में कानून बाद में आता है
ये पहला मौका नहीं है।BALCO पर हमेशा आरोप लगते हैं कि:
पहले construction शुरू करो
बाद में permissions adjust करो
जब फँस जाओ तो सरकार/राजनीति/कानून मैनेज करो
सवाल उठाने वाले को “ब्लैकमेलर” बोल दो
भाग 5: अब आगे क्या?
अब गेंद हाई कोर्ट के पाले में जाएगी।पूरा प्रदेश देखेगा कि:
क्या DFO भी स्पीड ब्रेकर होंगे ?
क्या DFO को भी जनहित की प्रमाणिकता साबित करनी होगी ?
या इस बार असली merit पर सुनवाई होगी?
समापन
BALCO G9 Project एक इमारत नहीं रहा — यह प्रशासनिक दक्षता , राजनीतिक जिम्मेदारी , न्यायिक विडंबना और जनता के अधिकारों की परीक्षा बन चुका है।



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