फाइनैनशीयल कामेडी
- Media Samvad Editor
- Aug 13
- 1 min read

जादुई संपत्ति
यह कहानी एक ऐसी औद्योगिक संपत्ति की है – चाहे वह स्मेल्टर हो, भट्ठी हो या प्लांट – बस दाम बड़ा होना चाहिए। आज यह बैंक के कर्ज़ के लिए गिरवी, कल डिबेंचर के लिए गिरवी, और परसों फिर से किसी और कर्ज़ के लिए गिरवी।यह संपत्ति बिल्कुल बॉलीवुड हीरो की तरह है – चेहरा वही, कपड़े नए।
ट्रस्टी के बदलते चेहरे
मंच पर आता है डिबेंचर ट्रस्टी (DT)। लेकिन ठहरिए – कल यह सिक्योरिटी ट्रस्टी (ST) भी बन गया! कैसे? बस लेटरहेड बदल लो। कभी निवेशकों के पैसों का पहरेदार, कभी बैंकों का पहरेदार। संपत्ति वही, पहरेदार वही, बस दरवाज़ा नया।
वैल्यूएशन का महा-त्याग
संपत्ति गिरवी रखने से पहले आप सोचेंगे कि उसकी कीमत जांची जाएगी। लेकिन क्यों? समय और पैसे की बर्बादी क्यों करनी, जब “मौखिक सहमति” और “सिक्योरिटी कवर” लिखकर ही सब ठीक किया जा सकता है? कागज़ों में सब स्वस्थ, ज़मीन पर किसी ने नाड़ी भी नहीं देखी।
डिफॉल्ट से बचने का देसी तरीका
अगर चूक (default) की स्थिति आए, तो घबराइए मत — बस नया कर्ज़ लीजिए और पुराना चुका दीजिए। रेटिंग अच्छी, निवेशक खुश, और घोड़ा-गाड़ी फिर से चल पड़ी। पुराना कर्ज़ गया, नया आ गया, संपत्ति फिर से गिरवी — खेल चलता रहेगा।
कहानी का सार
यह वित्तीय प्रबंधन नहीं, बल्कि गिरवी पुनर्चक्रण है। फर्क बस इतना है कि यह पर्यावरण नहीं, पारदर्शिता को प्रदूषित करता है। और जब संगीत बंद होगा, तो कुर्सी बिना खड़े रह जाएंगे… निवेशक।
अगले अंक में ---आखिर कौन हैं इस रंगमंच के खिलाड़ी ? और इस खेल का वाइसराय रिपोर्ट से क्या संबंध है? पूरे पोस्टमार्टम के साथ जानने के लिए बने रहिए।






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