सिंडिकेट – असली खेल
- Media Samvad Editor
- Aug 18
- 2 min read

प्रस्तावना
हमारे पिछले लेख – "वित्तीय सर्कस के स्टार परफ़ॉर्मर्स" में, हमने वो मंच दिखाया था जहाँ अभिनेता बदलते हैं लेकिन खेल वही रहता है।अब हम लेकर आए हैं इस खेल के सबसे खतरनाक किरदार — “नियमों के रक्षक” — जो असल में, असली खिलाड़ियों के पैदल प्यादे बन चुके हैं।
सवाल – आम आदमी की जुबान में
अगर रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से दाखिल कानूनी दस्तावेज़ों पर आधारित है, तो क्या कंपनी यह कह रही है कि नियामकों (Regulators) को जमा किया गया डेटा भरोसे के लायक नहीं है?
(यानी ‘हमने जो दिया, वो पवित्र है… पर उस पर भरोसा न करना’ — यह तो वैसे ही है जैसे कोई दुकानदार बोले, “मेरी मिठाई शुद्ध है… लेकिन मत खाना, पेट खराब हो जाएगा।”)
उजागर हुई विडंबना
कंपनी ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा — “वायसरॉय की रिपोर्ट किसी प्रमाणित दस्तावेज़ पर आधारित नहीं, बल्कि सार्वजनिक डोमेन के कागज़ात पर आधारित है।”अब ज़रा सोचिए — ये वही कागज़ हैं जो अनिवार्य अनुपालन के तहत खुद कंपनी ने जमा किए, और जिन्हें देखकर नियामकों ने कोई ‘लाल झंडी’ नहीं दिखाई।मतलब साफ — अगर ये कागज़ गलत हैं तो नियामकों की नींद क्यों नहीं टूटी?
(कहानी का नैतिक — “अगर चोरी पकड़ी जाए तो कहना कि पुलिस को तो पता था, उसने कुछ नहीं कहा…”)
पुराना आज़माया हुआ दांव
ये तो दशकों से चला आ रहा पुराना कॉरपोरेट नुस्ख़ा है — मुसीबत में फँसते ही नियामकों के पीछे छुप जाओ।यहाँ भी वही किया गया — आरोपों के बोझ से बचने के लिए, नियामकों की साख को बीच में घसीट लिया गया।कंपनी जानती है कि नियामक अपनी साख बचाने के लिए खुद ढाल बनेंगे… और जब ढाल मिल गई तो अतीत के पापों पर फेवीक्विक लगाकर भविष्य के सपनों का रास्ता साफ।
भरोसे का ठेका
जब आपकी खुद की विश्वसनीयता डगमगाने लगे, तो किसी ऐसे को सामने ला दो जिसकी साख पर कोई सवाल न उठाए।यहीं आया मास्टरस्ट्रोक — पूर्व मुख्य न्यायाधीश से कानूनी राय मंगवा ली, और प्रेस में ऐसे परोसी जैसे यह ब्रह्मवाक्य हो।
भैया, ये वैसा ही है जैसे दूल्हा शादी में गवाह लाए और बोले — “मेरे बारे में ये गवाही देंगे कि मैं अच्छा इंसान हूँ… बस बाकी रिश्तेदारों को चुप रहना है।”
आने वाले क़हर की दस्तक
वायसरॉय की रिपोर्ट में लगे गंभीर आरोप हमें गहरे फॉरेंसिक में ले गए — और वहाँ से जो निकला, वो केवल आरोप नहीं बल्कि संगठित आर्थिक अपराधों का ब्लूप्रिंट था।हमारे निष्कर्ष (जो अभी भी पुष्टिकरण में हैं) साफ़ कहते हैं — यह रिपोर्ट आने वाले आर्थिक प्रलय की चेतावनी है।
पढ़ते रहिए — अगली कड़ी में हम “भारतीय अर्थव्यवस्था की जड़ में लगाई जा रही दीमक” का खुला पोस्टमार्टम करेंगे।





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